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सति धर्म उजाला जग का पाला, विभ्रम टाला धर्म करा। यह ज्ञान उजालै अशुभ सु टालें, संजम पालै झूठ हरा।। सति प्रिति उपावै वैर गमावै, जो थुति लावै उर ज्ञानौ।
ऐसी सति धर्मा काटत कर्मा, दीपक परमा जजि जानौ।। ऊँ ह्रीं श्री सत्यधर्मांगाय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
सतिधर्म प्रभावै मुनि शिव जावै, जगजस गावै थुति लाई। सति धर्म जु मूला अघ-क्षय थूला, झुठ कुसूला दह भाई।। सत धर्म अनूपा शुभ रस कूपा, पूण्य स्वरूपा मग मानौ।
ऐसी सति धर्मा काटत कर्मा, धूप जु परमा जजि जानौ।। ऊँ ह्रीं श्री सत्यधर्मांगाय दुष्टाष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
सतिधर्म अभ्यासौ शिवथल वासौ, पाप बिनासौ हितकारी।
गुण ज्ञान बढावै आदर ल्यावै, पुण्य उपावै सति भारी।। जगमें अति नीका बन्धु जीका, शिवतिय पोका गुणथानौ।
ऐसी सति धर्मा काटत कर्मा, लेफल परमा जजि जानौ।। ऊँ ह्रीं श्री सत्यधर्मांगाय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
जल चन्दन नीका अक्षत टीका, फूल चुनीका माल करौ। चरु दीप सु लाया धूप बनाया, श्रीफल आया अर्घ धरौ।। उर भक्ति बढाई मुख थुति गाई, सत सब भाई पहिचानौ।
ऐसी सति धर्मा काटत कर्मा, अध्यं परमा जजि जानौ।। ऊँ ह्रीं श्री सत्यधर्मांगाय अनर्घपदप्राप्तये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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