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(बेसरी छन्द) सब जीवन में राग न दोषा, सो है क्षमा धर्म निरदोषा।
दुर्जन कृत उपसर्ग लहावै, ताहू पै समभाव रहावै।। मुनिको वचन कहै दुखकारी, मरम छेद छेदै अघधारी। मान खंड करिया करवावै, तब मुनि क्षमा धर्म मन लावै।। जे कोय दुष्ट मुनिनको, मारै, ताक्ष्य शस्त्रतें करि परिहारै। बांधे तनको खेद न पावै, तिनपर क्षमा धर्म मन लावै।। अति दुखिया जियको ऋषि जाने, तब मुनि अनुकंपा मन आन।
आपा परको हित उपजावै, तब मुनि क्षमा धर्म मन लावै।। उत्तम क्षमा धरम सुखदाई, क्षमा धरम सब जियका भाई। जब मुनिहुपै कष्ट जु आवै, तब मुनि क्षमा धरम मन लावै।।
क्षमा धरमसी ढाल न होई, क्रोध समान प्रहार न कोई। क्षमा समान न बल अति पावै तातें जती क्षमा वृष भावै।। क्षमा धरम शिव राह बताई, क्षमा तात माता अरु भाई। जाते सिद्ध सुखनको पावै ऐसी क्षमा मुनी मन लावै।।
(सोरठा) क्षमा आभूषण सार, उर में जो पहिरे सही। ते भवसागर पार, जजौं धर्म उत्तम क्षमा।।
ऊँ ह्रीं श्री उत्तमक्षमाधर्मांगाय पूर्णायं।
॥ इति उत्तम क्षमाधर्म पूजा।
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