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उत्तम मार्दव धर्मांग पूजा (पद्धरि छन्द)
मार्दव वृष भाव विचार सोइ, जहां मान भाव दीखे न को । इहधारी मुनि शिवगामी जानि, मैं जजों थापि मार्दव सुभानि।। ऊँ ह्रीं उत्तममार्दवधर्म अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्। ऊँ ह्रीं उत्तममार्दवधर्म अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं उत्तममार्दवधर्म अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
अर्थाष्टकम् (मणुवाणानंद की चाल )
क्षीर सम नीर शुद्ध गाल कर लाइये। पात्र सुवरण विषै धारि गुण गाइये।। जगतफिरनौ मिटे तासु फलतैं सही। धर्म मार्दव जजौं शुद्ध शिवदा मही॥1॥ ऊँ ह्रीं श्रीउत्तममार्दवधर्मांगाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
स्वच्छ नीर संग चंदनादि को मिलायजी । शुद्ध गंधयुक्त भक्ति भवतैं चढायजी।। जगत आताप-हर जानि ता फल सही। धर्म मार्दव जजौं शुद्ध शिवदा मही॥2॥ ॐ ह्रीं श्रीउत्तममार्दवधर्मांगाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
अक्षतं समुज्जवलं खंड बिन जानिये। सुभग मोता जिसे थाल भरि आनिये। ध्रौव्य फलदाय मनलाय ध्याऊँ सही। धर्म मार्दव जजौं शुद्ध शिवदा मही || 3 || ऊँ ह्रीं श्रीउत्तममार्दवधर्मांगाय अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
फूल कल्पवृक्षके गंध रंग सारजी । माल गूंथि शुद्धभाव भक्ति कर धारजी । मदन मद हरन सुफल जानि यातैं सही । धर्म मार्दव जजौं शुद्ध शिवदा मही॥4॥ ऊँ ह्रीं श्रीउत्तममार्दवधर्मांगाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
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