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प्रचुर गंध सुपुष्प सुमालया, भ्रमर गुंजत सौरभ धारया। निविड वाण मनोद्भव-वारक, मुनि यजामि रिधीरस-धारकम्।।4।। ॐ ह्रीं रसरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यो पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा।
सुरन पात्र भरे नैवेद्यकैः, घृत सुचारुरसादिक सज्यकैः। प्रचर रोग क्षधादि निवारकं, मुनि यजामि रिधी रसधारकम्।।5।। ॐ ह्रीं रसरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यो नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
रतन दीप मनोज्ञ उद्योतकैः, सुरन पात्र धरे सज्ज्योतिकैः। निरवधी सुविकाश प्रकाशकं, मुनि यजामि रिधी रसधारकम्।।6।। ऊँ ह्रीं रसरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यो दीपम् निर्वपामीति स्वाहा।
अगर चंदन धूप सुधूपनैः, अलि समूह भ्रमैति सुगंधनैः। करम काष्ठ समूह सुजारकं, मुनि यजामि रिधी रस धारकम्।।7।। ऊँ ह्रीं रसरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यः धूपम् निर्वपामीति स्वाहा।
सुभगमिष्ट मनोज्ञ फलावली, हरित घ्राण सुचक्षु सुखावली। मुकति थान मनोहर दायकं, मुनि यजामि रिधी रसधारकम्।।8।। ऊँ ह्रीं रसरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यः फलम् निर्वपामीति स्वाहा।
जल सुगंध सुतंडुल पुष्पकैः, चरु सुदीप सुधूप फलार्घकैः। पद अनध्य महाफलदायकं, मुनि यजामि रिधीरसधारकम्॥9॥ ॐ ह्रीं रसरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यः अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा।
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