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रस रिद्धि धारक सप्तम कोष्ठ पूजा
(छंद-कुंडलियाँ) रस रिधिधार मुनिंद के चरन कमल सिर नाय। वंदू मन वच काय करि भाव भगति चित लाय।। भाव भगति चित लाय करूँ मैं शुभ आह्वानन।
आप पधारो नाथ तिष्ठ इत इह संस्थापन।। निकट होउ मम बार बार विनती यह मेरी।
पूज करत चित चाव हमारै रिषिवर तुमरी।।1।। ऊँ ह्रीं रसरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वराः अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्।
ऊँ ह्रीं रसरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वराः अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ॐ ह्रीं रसरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वराः अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
अथाष्टक (छंद सुंदरी) विमल केवल उज्जवल जाय कै, सुर नदी जल भुंग भराय कै। जनम मृत्यु जरा क्षय-कारकं, मुनि यजामि रिधी रसधारकम्।।1। ॐ ह्रीं रसरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यः जलम् निर्वपामीति स्वाहा।
सहज कर्म कलंक विनासनैः, कमल उद्भवगंध सुगंध नैः। कदलि नंदन कुंकुम वारिकं, मुनि यजामि रिधी रसधारकम्।।2।। ऊँ ह्रीं रसरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यः चन्दनम् निर्वपामीति स्वाहा।
अखिल उज्ज्वल दीर्घ अखंडकं, किरण चन्द्रसमान सुधौतकम्। अतुलसौख्य सुथान सुदायकं, मुनि यजामि रिधी रसधारकम्।।3।। ऊँ ह्रीं रसरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यो अक्षतम् निर्वपामीति स्वाहा।
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