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दुरभिक्ष रहै नहीं जी ता देस मंझार रिषिवरजी।।
आधि-व्याधि भय देश के सब ही मिटि जाय। सर्वजीवा के जी अति सुख थाय रिषिवरजी।।8। वह मनि जा वन के विषै सभ ध्यान करात।
जाति विरोधी हो वैर नसात रिषिवरजी।। षट् ऋतु के हों फूल फल सब वृक्ष फलंत।
सूके सरवर हों तुरत भरंत रिषिवरजी।।9। नाम तिहारो जो जो जपै मन वच तन तिरकाल।
जो भवि गावै जी तुम गणमाल रिषिवरजी।।
भोग संपदा होवै नर पाय कै फिरि इंद्र पदादि। शिव सरूप मय होजी निज आस्वादि रिषिवरजी।।10।
(धत्ता) औषधिरिधिधारी मुनि अविकारी भक्ति निहारी हृदयधरी। ___ करि पूजा सारी अष्ट प्रकारी यह गुणमाला कंठ धरी।।11। ऊँ ह्रीं औषधिरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यः जयमालार्घ निर्वपामीति स्वाहा।
(अडिल्ल) आधि व्याधि करि नास सर्व भय कूँ हरो। रिद्धि वृद्धि घर माँहि सकल संपत्ति भरो।। जिनधर्मी जिन माँहि सकल मंगल करो। या पूजन कर भाव विघन सब ही टरो।।1।।
|इत्याशीर्वादः॥
।।इति औषध रिद्धिधारक मुनीश्वर षष्ठ कोष्ठ पूजा।।
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