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बलऋद्धिधारक ऋषीश्वर पंचम कोष्ठ पूजा
(छंद लक्ष्मीधरा) धरत शिर धरत शिर धरत शिर चरनतर। करत हम करत हम करत गुरु भक्तिवर।। थपत इस थपत इत थपत इत ऋषिचरन। बल रिद्धि बलरिद्धि बलरिद्धि अर्चन करन।।1॥
ऊँ ह्रीं बलरिद्धिधर सर्वमुनीश्वराः अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्।
ॐ ह्रीं बलरिद्धिधर सर्वमुनीश्वराः अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं बलरिद्धिधर सर्वमुनीश्वराः अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
अथाष्टक (चाल योगीरासा की) क्षीरोदधि पद्मादि हृदनि को गंगादिक जल ल्यायो। रतन जडित श्रृंगार धारदे श्रीगुरु चरन चढ़ायो।। जन्म-जरा-मृति नास हेतु पुनि कर्मकलंक हराई।
बलरिद्धिधार मुनीश्वर पूजत बल अनंत है जाई।।1।। ॐ ह्रीं बलरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यो जलं निर्वपामीति स्वाहा।
मलयागिरि चंदन के माँही केशरि रंग मिलावै। कर्पूरादि सुगंध द्रव्य शुभ ता मैं मेलि घसावै।। मोहाताप हरत भ्रम नासत तम अज्ञान नसाई।
बलरिद्धिधार मुनीश्वर पूजत बल अनंत है जाई।।2।। ऊँ ह्रीं बलरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यः चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।
अखिल अखिंडित सौरभ मंडित चंद्रकिरणसे श्वेत। जल प्रक्षालित कनक थाल भरि पुंज करूँ शुभ हेत। परम अखंडित पद है यातें अनुपम सुख अधिकाई। बलरिद्धिधार मुनीश्वर पूजत बल अनंत है जाई।।3।।
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