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ऊँ ह्रीं बलरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यः अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
मेरु मंदारु सुपारिजात केहरि चंदन के ल्यावै। चाँदी सुवरन कमल मनोहर घ्राणरु चक्षु सुहावै।। काम बाण विध्वंसन कारन श्री गुरु चरन चढ़ाई।
बलरिद्धिधार मुनीश्वर पूजत बल अनंत है जाई।।4।। ॐ ह्रीं बलरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यः पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
रोगक्षध यह नित प्रति मोकूँ दःख देवै अतिभारे। ता कै नासन कारन नेवज मोदक फेणी तारे।। चंद्रिक गूजा घेवर वावर कनक थाल भरवाई। बलरिद्धिधार मुनीश्वर पूजत बल अनंत है जाई।।5।। ॐ ह्रीं बलरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यो नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
दीप रतनमय कर्पूरादिक स्वर्ण रकाबी धारें। जगमग जगमग ज्योति करत है श्रीमुनिचरण उतारे।। मोह निविड विध्वंसन द्वै निज ज्ञान उद्योत कराई।
बलरिद्धिधार मुनीश्वर पूजत बल अनंत है जाई।।6।। ॐ ह्रीं बलरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यो दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
अगर तगरमलयागिरि चंदन धूप दशांग वणावें। गुंजत भंग सुगंध मनोहर खेवत दश दिशि धावें। कर्म उड़ें मनु धूम मिसनतें आतम उज्जवल थाई।
बलरिद्धिधार मुनीश्वर पूजत बल अनंत है जाई।।7।। ॐ ह्रीं बलरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यो धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
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