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________________ रोग व्यथा बहु उपजत मुनितन तो वासादि कराई। चिगै नहिं तप ध्यान संयम सूँ घोरतपोरिधि याही।। आवोजी आवो सब मिलि मुनिवर पूजन चाला। मुनि जी दरसन जल सूं करम कलंक परवाला ॥6॥ ॐ ह्रीं घोरतपोऽतिशय रिद्धिधारक सर्वशांतिकर सर्वमुनीश्वरेभ्यः अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा। घोर पराक्रमरिधि के धारक जिन कूँ दुष्ट सतावै। ता कारण जी सर्व देस में मरी आदि भय आवै।। आवोजी आवो सब मिलि मुनिवर पूजन चाला। मुनि के जी दरसन जल सूं करम कलंक परवाला।।7। ऊँ ह्रीं घोरपराक्रमतपोऽतिशय रिद्धिधारक सर्वशांतिकर सर्वमुनीश्वरेभ्यः अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा। गुण अघोर ब्रह्माचर्यधार मुनि तिष्ठत जहाँ सुखदाई। मरी आदि सब रोग मिटत तहाँ रिद्धिवृद्धि अधिकाई ।। आवोजी आवो सब मिलि मुनिवर पूजन चाला। मुनि के जी दरसन जल सूं करम कलंक परवाला ॥8॥ ॐ ह्रीं अघोर ब्रह्मचर्य तपोऽतिशय रिद्धिधारक सर्वशांतिकर सर्वमुनीश्वरेभ्यः अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा। (सोरठा) उग्र तपादिक रिद्धि, ब्रह्मचर्य लौं सात सब | धारक मुनि समृद्धि, पूजूँ अर्घ चढ़ाय कै॥9॥ ऊँ ह्रीं उग्रतपः आदि अघोर ब्रह्मचर्यपर्यन्त सप्त तपोऽतिशय रिद्धिधारक सर्वशांतिकर सर्वमुनीश्वरेभ्यः अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा। 555
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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