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(चाल- आवोजी आवो सब मिलि जिन चैत्यालय चालो) एक वास करि घटै नहीं फिरि अधिक अधिक विस्तारै। एही जी उग्र तपोरिधिधारक मुनिभव त्यारै राजै।।
आवोजी आवो सब मिलि मुनिवर पूजन चाला।
मुनि के जी दरसन जल सूं करम कलंक परवाला।।2।। ॐ ह्रीं उग्रतपोऽतिशयरिद्धिधारक सर्वशांतिकर सर्वमुनीश्वरेभ्यः अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा।
बहुत वास करि क्षीण भयो तन दीप्ति अधिकता धारै। __ एही जी दीप्तितपोरिधि मुख सुगंध विस्तारै।
आवोजी आवो सब मिलि मुनिवर पूजन चाला।
मुनि के जी दरसन जल सं करम कलंक परवाला।।3।। ॐ ह्रीं दीप्तिजपोऽतिशयरिद्धिधारक सर्वशांतिकर सर्वमुनीश्वरेभ्यो अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा।
आहार करत नीहार होत नहिं शुष्क भये तन माँही। एही जी तप्ततपो रिधिधारक मुनि अरचा ही राजी।।
आवोजी आवो सब मिलि मुनिवर पूजन चाला।
मुनि के जी दरसन जल सं करम कलंक परवाला।।4।। ॐ ह्रीं तप्त तपोऽतिशयरिद्धिधारक सर्वशांतिकर सर्वमुनीश्वरेभ्यः अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा।
मति श्रुत अवधि ज्ञान करि सूक्ष्म त्रस नाडी कै माँही।
जानें सबहुँ भाव जीवन के महातपोरिधि याही।।
आवोजी आवो सब मिलि मुनिवर पूजन चाला।
मुनि के जी दरसन जल सूं करम कलंक परवाला।।5।। ॐ ह्रीं महातपोऽतिशय रिद्धिधारक सर्वशांतिकर सर्वमुनीश्वरेभ्यः अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा।
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