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अगरतगर मलयागर चंदन केलीनंदन धूप करी। सुरन धूपायन संग हुतासन खेवत भाजें करम अरी।। तपरिद्धि के स्वामी शिवपद गामी शांति करामी तुम ध्यावै।
करि विघन विनासं मंगलभासं हरिभवत्रासं गुणगावें।।7। ऊँ ह्रीं तपोऽतिशय रिद्धिधारक सर्वशांतिकर सर्वमुनीश्वरेभ्यो धूपम् निर्वपामीति स्वाहा।
सुष्ट मिष्ट बादाम जायफल दाख पूग श्रीफल भारी। एला आदि फलनितें पूजॅ मक्ति मिलावन भरि थारी।। तपरिद्धि के स्वामी शिवपद गामी शांति करामी तुम ध्यावै।
करि विघन विनासं मंगलभासं हरिभवत्रासं गुणगावै।।8।। ऊँ ह्रीं तपोऽतिशय रिद्धिधारक सर्वशांतिकर सर्वमुनीश्वरेभ्यो फलम् निर्वपामीति स्वाहा।
स्वच्छ नीर मलयागिर चंदन अखत पुष्प नेवज भारी। दीप धूप फल स्वर्ण थाल भरि अरघ चढ़ाऊँ सुखकारी।। तपरिद्धि के स्वामी शिवपद गामी शांति करामी तुम ध्यावै।
करि विघन विनासं मंगलभासं हरिभवत्रासं गुणगावै॥9॥ ॐ ह्रीं तपोऽतिशय रिद्धिधारक सर्वशांतिकर सर्वमुनीश्वरेभ्यो अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा।
अथ प्रत्येक पूजा (दोहा) तपत रिद्धिधर तपत नित, टरत उपद्रव वृंद।
षट् रितु तरुवर फल फलत, अरचत सकल नरिंद।।1।। ॐ ह्रीं तपोऽतिशयरिद्धिधारक सर्वशांतिकर सर्वमुनीश्वरेभ्यो अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा।
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