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तिन के पद की रज जी, धरि हैं शुभ शीर्षज जी। तब ही हम कारिज बहुविधि के
सरैजी।।17॥ हम सरनि तिहारी जी, भय भव सुखकारी जी। तातें हम धारी भक्ति हिदा बिर्षे जी।।18॥
(दोहा)
विक्रिय रिधि धर मुनिन की, कंठ धरै गुनमाल।
मुनि सरूप कूँ ध्यान कै, होवै बुद्धि विसाल।।19॥ ॐ ह्रीं एकादशविक्रियारिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यः जयमाला अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा।
(सोरठा) होय विघन सब नास, मंगल नित प्रति है सदा। होय रिद्धि परकास, पूजन जो या विधि
करै।1।
।।इत्याशीर्वादः॥
।।इति विक्रिया रिद्धिधारक तृतीय कोष्ठ पूजा।।
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