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चतुर्थकोष्ठ तपोऽतिशय ऋद्धि प्राप्त ऋषीश्वर पूजा
(अडिल्ल) तप रिधि धारक मुनी जहाँ तिष्ठं सही। मरी आदि सब रोग जहाँ कछु है नहीं।। जाति विरोधी जीव बैर सब ही तज। शान्ति होन के काज थापि हम ह यजै॥1॥ ऊँ ह्रीं तपोरिद्धिधारकसर्वमुनीश्वराः अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्।
ऊँ ह्रीं तपोरिद्धिधारकसर्वमुनीश्वराः अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ॐ ह्रीं तपोरिद्धिधारकसर्वमुनीश्वराः अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
(अथाष्टक-छंद त्रिभंगी) निर्मल शुभ नीरं गंधगहीरं प्रासुकशीरं ले आया। भरि कंचन झारी धार उतारी जनि मृत्युहारी पदध्याया।। तपरिद्धि के स्वामी शिवपद गामी शांति करामी तुम ध्यावै।
करि विघन विनासं मंगलभासं हरिभवत्रासं गुणगावै॥1॥ ॐ ह्रीं तपोऽतिशय रिद्धिधारक सर्वशांतिकर सर्वमुनीश्वरेभ्यो जलम् निर्वपामीति स्वाहा।
मलय सुचंदन कदली नंदन भवजप भंजन कूँ ल्याया। तुम चरण चढ़ामी शिवसुखगामी गुणधामी पूजन आया।। तपरिद्धि के स्वामी शिवपद गामी शांति करामी तुम ध्यावै।
करि विघन विनासं मंगलभासं हरिभवत्रासं गुणगावै॥2॥ ऊँ ह्रीं तपोऽतिशय रिद्धिधारक सर्वशांतिकर सर्वमुनीश्वरेभ्यो चंदनम् निर्वपामीति स्वाहा।
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