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बीस प्ररूपणतैं सकल श्रीरिसिवरजी । जाण्यों जीव प्रयोग मुनिवर जी ॥9॥ इन तैं जिहाँ जिहाँ जीव हैं श्री मुनिवर जी । त्रस थावर दो भाँत जाण्या जी।। सूक्ष्म बादर रु भेद युत सब जानी जी । संसारी की जाति श्री मुनिवर जी।।10।।
सबै जानि आगम गमन सब करत जी। संवर धरि निजभाव श्री मुनिवर जी। पालै करुण सबनि की श्री यतिवरजी । जीव जाति करि चाव श्री यतिवर जी ॥11॥ चारणरिधि के होत ही करुणा प्रतिपालै । पृथ्वी धरत न पाँव श्री मुनिवर जी ।।
तातैं की देह तैं श्री मुनिवर कै। रंच न हिंसा भाव कदापि होवै जी॥12॥ चारण मुनि के गुणनि को धी तुछधारी हों । को लौं करैं कहान श्री मुनिवर जी।। सहस जीभ तैं इन्द्र भी श्री मुनिवर को । नहिं कर सकै बखान श्री मुनिवर जी।।13। अब मेरी यह वीनती श्री मुनिवर जी । सुन लीज्यों ऋषिराज सारी जी ॥
जो लौं शिव पाऊँ नहीं श्री मुनिवर जी । तौ लौ दरस दिखाय श्री यतिवीर जी।।14।।
(सोरठा)
जो यह पढ़े त्रिकाल, गुणमाला ऋषिराज की।
होवै भवदधि पार, मुनि स्वरूप को ध्यान करि।।15।
ॐ ह्रीं चारण क्रियारिद्धिधारक सर्वऋषीश्वरेभ्यो जयमालार्धं निर्वपामीति स्वाहा।
(छप्पय )
चारण मुनि की पूज करै ई विधि भविप्रानी। सकल विघन करि नाश होय मंगल सुनिधानी।। रिद्धि वृद्धि बहु लोय तास कै गृह के माँही | पुत्र पौत्र सुख बढ़े और परियण सुखदांही।। मनवचकाय पूजा करत, पाप सकल कूँ नाशफिरि। भरत पुन्य भंडार के, मुनि प्रसाद तैं तास घर।।
।। इत्याशीर्वादः।। ।।इति द्वितीय कोष्ठ पूजा।।
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