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(सोरठा) जल चारण नैं आदि, भेद क्रिया रिधि के सफल।
धारक जिन ऋषि पाद, मन वच तन पूजूं सफल।। ऊँ ह्रीं नवभेद चारण क्रियारिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यः अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला (अडिल्ल छंद) चारण ऋद्धि के धार मुनीश भये तिन्है।। मन वच तन करि शुद्ध नमन करिहूँ जिन्हें। जीव भेद षट् काय अभय सब कूँ दयो। तिन के तन में बिना यतन ही सिध भयो।।1।।
(चाल पणिहारी की) पृथ्वी अरु अप तेज की अब जाणी हो। वायुकाय की जाती मुनिवर जी। नित्यरु इतर निगोद की सब जाणी हो। सात सात लख जाति मुनिवर जी।।2।। वनस्पति की लाख दश सब जाणी हो। विकलत्रय की दो दो लाख मुनिवर जी।। पंचेन्द्रिय तिर्यंच की सब जाणी हो। देव नरक की चव चव लाख मुनिवर जी।।3।।
चवधह लाख मनुष्य की सब जाणी हो। ये योनि चौरासी लाख मुनिवर जी।। इक कोड़ा कोडि सतावन लाख जाण्या हो। पचास सहस कोड़ी कुलभाष मुनिवर जी।।4।।
इन्द्रिय पंच जु च्यारि गति सब जाणी हो। षट् काय पंदरा योग मुनिवर जी।। वेद तीन द्रव्य भावतें सब जाण्या हो। कषाय पच्चीस को योग मुनिवर जी।5।।
ज्ञान आठ मैं भेद दो यह जाण्या जी। सम्यक् अरु कुज्ञान मुनिवर जी॥ संयत सातरु दर्श वच सब जाण्या हो। लेश्या षट् पहिचानि मुनिवर जी।।6।।
भव्य दोय सम्यक्तव छह सब जाणी हो। संज्ञी उभय बखाणि मुनिवर जी। अहारक युग सब जीव के सो जाण्या जी। मार्गण चौदह जाणि मुनिवर जी।।7।। गुणस्थान चउदश सकल सब जाण्या जी। चौदह जीव समास मुनिवर जी।। पर्याप्ति षट् भेदयुत सब जाण्या जी। प्राण जु दस हैं जास मुनिवर जी।।8।।
संज्ञा चार जु जीव कै सब जाणी हो। हैं बारह उपयोग मुनिवर जी।।
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