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तृतीय कोष्ठ विक्रिया ऋद्धि धर मुनीश्वर पूजा
(चौपाई रूपक)
सब जीवन के सुख के कंदा, विक्रिय ऋधि के धार मुनिंदा थापों पूजन काज सदीवा, मन वांछित फल दाय अतीवा।। 1 ।।
ऊँ ह्रीं विक्रियारिद्धिधर सर्वमुनीश्वराः अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्।
ऊँ ह्रीं विक्रियारिद्धिधर सर्वमुनीश्वराः अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं विक्रियारिद्धिधर सर्वमुनीश्वराः अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
कमल सुगंध सुवासित परिमल, गंगादिक जल सार।
निर्गत रत्नभृंग त्रयधारा, जन्म-जरा- रा-मृति हार
मुनीश्वर पूजत हूँ मैं, विक्रियरिधि के धार। मुनीश्वर, पूजत हूँ मैं । 1 ॥ ॐ ह्रीं विक्रियारिद्धिधर सर्वमुनीश्वरेभ्यः जलम् निर्वपामीति स्वाहा।
मलयागिर चंदन घसि केसरि, और मिलाऊँ घनसार।
भव संताप हरन के कारण, अरचूँ बारंबार।। मुनीश्वर पूजत हूँ मैं, विक्रियरिधि के धार । मुनीश्वर, पूजत हूँ मैं ।।2। ऊँ ह्रीं विक्रियारिद्धिधर सर्वमुनीश्वरेभ्यः चंदम् निर्वपामीति स्वाहा।
कलम सालि के अखित अखंडित, मुक्तासम अविकार। अखय अखंडित सुखकारन भरि, कनक रतनमल थाल।। मुनीश्वर पूजत हूँ मैं, विक्रियरिधि के धार । मुनीश्वर, पूजत हूँ मैं । 3 ॥ ॐ ह्रीं विक्रियारिद्धिधर सर्वमुनीश्वरेभ्यो अक्षतम् निर्वपामीति स्वाहा।
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