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सुमन सुमन मनहार अधिक सुगंध भरे, मनमथ के नाशनकार ऋषिवर पाद धरे। मैं बुद्धि ऋद्धिधर धीर मुनिवर पूज करौं, यातें है ज्ञान गहीर भव संताप हरौं।।4।। ऊँ ह्रीं अष्टादश बुद्धि ऋद्धिधारकेभ्यः सर्वमुनीश्वरेभ्यः कामबाण विध्वंसनाय पुष्पाणि
निर्वपामीति स्वाहा।
नेवज विविध मनोज्ञ मोदक थाल भरै, ऋषिवर चरन चढ़ाय रोग क्षदादि हरौं।
मैं बुद्धि ऋद्धिधर धीर मुनिवर पूज करौं, यातें है ज्ञान गहीर भव संताप ह ।।5। ऊँ ह्रीं अष्टादश बुद्धि ऋद्धिधारकेभ्यः सर्वमुनीश्वरेभ्यः क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति
स्वाहा।
ध्वान्त हरन शुभ ज्योति दीपक की भारी, ले ज्ञान उद्योतन कार मणिमय भरि थारी। मैं बुद्धि ऋद्धिधर धीर मुनिवर पूज करौं, यातें है ज्ञान गहीर भव संताप ह ।।6।। ऊँ ह्रीं अष्टादश बुद्धि ऋद्धिधारकेभ्यः सर्वमुनीश्वरेभ्यः मोहांधकार विनाशनाय दीपं
निर्वपामीति स्वाहा।
या धूप दशांग बनाय हुताशन में जारी, भरि स्वर्णधूपायन मांहि जरत सब कर्मारी। मैं बुद्धि ऋद्धिधर धीर मुनिवर पूज करौं, यातें है ज्ञान गहीर भव संताप ह ।।7।। ऊँ ह्रीं अष्टादश बुद्धि ऋद्धिधारकेभ्यः सर्वमुनीश्वरेभ्यः अष्टकर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति
स्वाहा।
श्रीफल पूग बदाम खारक मनहारी, मैं मुक्ति मिलन के काज चाहोदूँ भरि थारी। मैं बुद्धि ऋद्धिधर धीर मुनिवर पूज करौं, यातें है ज्ञान गहीर भव संताप ह ।।8। ॐ ह्रीं अष्टादश बुद्धि ऋद्धिधारकेभ्यः सर्वमुनीश्वरेभ्यः महामोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति
स्वाहा।
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