________________
बुद्धि ऋद्धि आदिक अष्टऋद्धि कोष्ठकों में प्रथम बुद्धि ऋद्धि धारक मुनि पूजा
(छंद लक्ष्मीधरा) बुद्धि ऋद्धिश्वरा बुद्धि ऋद्धीश्वरा, अत्र आगच्छ आगच्छ तिष्ठो वरा। मम निकटहोउ निकटहोउ निकट सर्वदा, तुम पूजि हो पूजि कर जोर शर्मदा।। ऊँ ह्रीं अष्टादश बुद्धि ऋद्धि धारकाः सर्वमुनीश्वराः अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्।
ऊँ ह्रीं अष्टादश बुद्धि ऋद्धि धारकाः सर्वमुनीश्वराः अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ॐ ह्रीं अष्टादश बुद्धि ऋद्धि धारकाः सर्वमुनीश्वराः अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट
सन्निधिकरणम्।
(ढाल- द्यानत कृत अष्टाह्निका पूजा) प्रासुक जल शुभ कर लेय कंचन भंग भरौं, त्रय धार चरन ढिग देय कर्म कलंक हरौं। मैं बुद्धि ऋद्धिधर धीर मुनिवर पूजन करौं, यातें है ज्ञान गहीर भव संताप ह ।।1। ऊँ ह्रीं अष्टादश बुद्धि रिद्धिधारकेभ्यः सर्वमुनीश्वरेभ्यः जन्म-जरा-मृत्यु विनाशनाय जलं
निर्वपामीति स्वाहा।
मलयागिर चंदन लेय कुंकुम संघ घसौं, अरचा करि श्री ऋषिराज भव आताप नसौं। मैं बुद्धि ऋद्धिधर धीर मुनिवर पूज करौं, यातें है ज्ञान गहीर भव संताप हरौं।।2।। ऊँ ह्रीं अष्टादश बुद्धि ऋद्धिधारकेभ्यः सर्वमुनीश्वरेभ्यः संसारताप विनाशनाय चंदनं
निर्वपामीति स्वाहा।
अक्षत अखंडित सार मुनि चित से उजरे। ले चंद किरन उनहार चरननि पुंज धरै।।
मैं बुद्धि ऋद्धिधर धीर मुनिवर पूज करौं, यातें है ज्ञान गहीर भव संताप हरौं।।3।। ॐ ह्रीं अष्टादश बुद्धि ऋद्धिधारकेभ्यः सर्वमुनीश्वरेभ्यः अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति
स्वाहा।
529