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फाल्गुन वदी शुभ द्वादशी, सम्मेदगिरि निज ध्याय के। जिननाथ मुनिसुव्रत पधारें, मोक्ष आनन्द पाय के।। हम धार अध्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शद्धात्म मन में भाय के।। ऊँ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा द्वादश्यां श्री मुनिसुव्रत जिनेन्द्राय मोक्षकल्याणक प्राप्ताय अध्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।20॥
वैशाख कृष्ण चौदशी, सम्मेदगिरि निज ध्याय के। नमिनाथ मुक्ति विशाल पाई, सकल कर्म नशाय के।। हम धार अध्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के।। ॐ ह्रीं वैशाखकृष्णा चतुर्दश्यां श्री नमिनाथ जिनेन्द्राय मोक्षकल्याणक प्राप्ताय अध्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।21॥
आषाढ़ शुक्ला सप्तमी, गिरनार गिरि निज ध्याय के। श्री नेमिनाथ स्वधाम पहुंचे, अष्टगुण झलकाय के।। हम धार अध्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के।। ऊँ ह्रीं आषाढशुक्ला सप्तम्यां श्री नेमिनाथ जिनेन्द्राय मोक्षकल्याणक प्राप्ताय अध्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।22॥
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