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वैशाख शुक्ला प्रतिपदा, सम्मेदगिरि निज ध्याय के। श्री कुन्थुनाथ स्वधाम लीनी, परम पद झलकाय के।। हम धार अध्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के।। ऊँ ह्रीं वैशाखशुक्ल प्रतिपदायां श्री कुन्थुनाथ जिनेन्द्राय मोक्षकल्याणक प्राप्ताय अध्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।17॥
अम्मावसी वद चैत की, सम्मेदगिरि निज ध्याय के। श्री अरहनाथ स्वथान लीनों, अमर लक्ष्मी पाय के।। हम धार अध्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के।। ऊँ ह्रीं चैत्रकृष्णा अमावस्यां श्री अरहनाथ जिनेन्द्राय मोक्षकल्याणक प्राप्ताय अध्यं
निर्वपामीति स्वाहा॥18॥
शुभ शुक्ल फाल्गुन पंचमी, सम्मेदगिरि जिन ध्याय के। श्री मल्लिनाथ स्वथान पहुँचे, परम पदवी पाय के।। हम धार अध्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के।। ऊँ ह्रीं फाल्गुनशुक्ला पंचम्यां श्री मल्लिनाथ जिनेन्द्राय मोक्षकल्याणक प्राप्ताय अध्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।19॥
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