________________
अम्मावसी वद चैत्र की, सम्मेदगिरि निज ध्याय के । स्वामी अनन्त स्वधाम पायो, गुण अनन्त लखाय के।।
हम धार अघ्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के। सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के।।
ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णा अमावस्यां श्री अनंतनाथ जिनेन्द्राय मोक्षकल्याणक प्राप्ताय अघ्यं निर्वपामीति
स्वाहा॥14॥
शुभ ज्येष्ठ शुक्ला चौथ दिन, सम्मेदगिरि निज ध्याय के । श्री धर्मनाथ स्वधर्मनायक, भये निज गुण पाय के।
हम धार अघ्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के।।
ॐ ह्रीं ज्येष्ठशुक्ला चतुथ्यां श्री धर्मनाथ जिनेन्द्राय मोक्षकल्याणक प्राप्ताय अध्यं निर्वपामीति
स्वाहा।।15।
शुभ ज्येष्ठकृष्णा चौदसी, सम्मेदगिरि निज ध्यान के श्री शांतिनाथ स्वधाम पहुंचे, परम मार्ग बताय के।।
हम धार अघ्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के।।
ऊँ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णा चतुर्दश्यां श्री शांतिनाथ जिनेन्द्राय मोक्षकल्याणक प्राप्ताय अघ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।16।।
513