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दिन पूर्णमासी श्रावणी, सम्मेदगिरि निज ध्याय के। जिन श्रेयनाथ स्वधाम पहुंचे, आत्मलक्ष्मी पाय के।। हम धार अध्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के।। ऊँ ह्रीं श्रावणपूर्णमास्यां श्री श्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय मोक्षकल्याणक प्राप्ताय अयं निर्वपामीति
स्वाहा।।11॥
शुभ भाद्र सुद चौदस दिना, मंदारगिरी निज ध्याय के। श्री वासुपूज्य स्वथान पहुंचे, ली हो, कर्म आठ जलाय के।।
हम धार अध्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के।। ऊँ ह्रीं भाद्रशुक्ल चतुर्दश्यां श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय मोक्षकल्याणक प्राप्ताय अयं निर्वपामीति
स्वाहा।।12॥
आषाढ़ वद शुभ अष्टमी, सम्मेदगिरि निज ध्याय के। श्री विमल निर्मल धाम लीनी, गुण पवित्र बनाय के।। हम धार अध्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शद्धात्म मन में भाय के। ॐ ह्रीं आषाढकृष्णा अष्टम्यां श्री विमलनाथ जिनेन्द्राय मोक्षकल्याणक प्राप्ताय अध्यं
निर्वपामीति स्वाहा॥13॥
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