________________
शुभ शुक्ल फाल्गुन सप्तमी, सम्मेदगिरि निज ध्याय के। श्री चन्द्रप्रभ निर्वाण पहुंचे, शुद्ध ज्योति जगाय के।। हम धार अघ्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के। सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के।।
ऊँ ह्रीं फाल्गुनशुक्ला सप्तम्यां श्री चन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय मोक्षकल्याणक प्राप्ताय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥8॥
शुभ भाद्र शुक्ला अष्टमी, सम्मेदगिरि निज ध्याय के । श्री पुष्पदन्त स्वधाम पायो, स्वात्म गुण झलकाय के।। हम धार अघ्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के। सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के।।
ॐ ह्रीं भाद्रशुक्ल अष्टम्यां श्री पुष्पदन्त जिनेन्द्राय मोक्षकल्याणक प्राप्ताय अघ्यं निर्वपामीति
स्वाहा॥9॥
दिन अष्टमी शुभ क्वार सुद, सम्मेदगिरि निज ध्याय के। श्रीनाथ शीतल मोक्ष पाए, गुण अनन्त लखाय के।।
हम धार अघ्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के। सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के।।
ऊँ ह्रीं आश्विनशुक्लअष्टम्यां श्री शीतलनाथ जिनेन्द्राय मोक्षकल्याणक प्राप्ताय अयं
निर्वपामीति स्वाहा॥10॥
511