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शुभ चैत सुदि एकादशी, सम्मेदगिरि निज ध्याय के। श्री सुमतिजन शिवधाम पायो, आठ कर्म नशाय के।। हम धार अध्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के।। ऊँ ह्रीं चैत्रशुक्ला एकादश्यां श्री सुमतिनाथ जिनेन्द्राय मोक्षकल्याणक प्राप्ताय अध्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।5॥
शुभ कृष्ण फाल्गुन सप्तमी, सम्मेदगिरि निज ध्याय के।
श्रीपद्मप्रभ निर्वाण हुये स्वात्म अनुभव पाय के।। हम धार अध्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के।। ऊँ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा सप्तम्यां श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय मोक्षकल्याणक प्राप्ताय अयं निर्वपामीति
स्वाहा॥6॥
शुभ कृष्ण फाल्गुन सप्तमी, सम्मेदगिरि निज ध्याय के। श्री जिनसुपाश्व स्वस्थान लीयो, स्वकृतआनन्द पायके।। हम धार अध्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के।। ऊँ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा सप्तम्यां श्री सुपाशर्वनाथ जिनेन्द्राय मोक्षकल्याणक प्राप्ताय अध्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।7॥
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