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ऊँ ह्रीं माघकृष्णा चतुर्दश्यां श्री वृषभनाथ जिनेन्द्राय मोक्षकल्याणक प्राप्ताय अध्यं निर्वपामीति
स्वाहा।।।।
शुभ चैत सुदि पांचम दिना, सम्मेद गिरि निज ध्याय के।
अजितेश सिद्ध हुए भविगण, पूजते हित पाय के।। हम धार अध्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के।। ऊँ ह्रीं चैत्रशुक्ला पंचम्यां श्री अजितनाथ जिनेन्द्राय मोक्षकल्याणक प्राप्ताय अध्यं निर्वपामीति
स्वाहा॥2॥
शुभ माघ दि षष्ठी दिना सम्मेदगिरि निज ध्याय के। सम्भव निजातम केलि करते, सिद्ध पदवी पाय के।। हम धार अध्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के।। ऊँ ह्रीं माघशुक्ला षष्ठयां श्री संभावनाथ जिनेन्द्राय मोक्षकल्याणक प्राप्ताय अयं निर्वपामीति
स्वाहा।।3॥
वैशाख सुदि षष्ठी दिना, सम्मेदगिरि निज ध्याय के। अभिनन्दनं शिव धाम पहुंचे, शुद्ध निज गुण पाय के।। हम धार अध्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के।। ऊँ ह्रीं वैशाखशुक्ला षष्ठयां श्री अभिनन्दनाथ जिनेन्द्राय मोक्षकल्याणक प्राप्ताय अध्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।4॥
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