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शुभ श्रावणी सुद सप्तमी, सम्मेदगिरि निज ध्याय के। श्री पार्शवनाथ स्वथान पहुंचे, सिद्धि अनुपम पाय के।। हम धार अध्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के।। ऊँ ह्रीं श्रावणशुक्ला अष्टम्यां श्री पाश्वनाथ जिनेन्द्राय मोक्षकल्याणक प्राप्ताय अध्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।23॥
अम्मावसी वद कार्तिकी, पावापुरी नित ध्याय के। श्री वर्धमान स्वधाम लीनो, कर्म वंश जलाय के।। हम धार अध्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के।
सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के।। ऊँ ह्रीं कार्तिककृष्णा अमावस्यां श्री वर्द्धमान जिनेन्द्राय मोक्षकल्याणक प्राप्ताय अध्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।240
जयमाला (भुजंत प्रयात) नमस्ते नमस्ते नमस्ते जिनन्दा। तुम्हीं सिद्ध रूपी हरे कर्म फंदा। तुम्ही ज्ञान सूरत भविक नीरजों को। तुम्हीं ध्येय वायू हरो सब रजों को।।1।
तुम्ही निष्कलंकं चिदाकर चिन्मय। तुम्हीं अक्षजीतं निजाराम तन्मय। तुम्हीं लोक ज्ञाता तुम्हीं लोकपालं। तुम्ही सर्वदर्शी हतो मान काल।।2।। तुम्हीं क्षेमकारी तुम्हीं योगिराज। तुम्हीं शांत ईश्वर कियो आप काज। तुम्हीं निर्भयं निर्मलं वीतमोह। तुम्हीं साम्य अमृत पियो वीतद्रोह।।3।। तुम्हीं भव उदधि पारकर्ता जिनेशं। तुम्हीं मोह तम के निवारक दिनेशं।
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