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फागुन की सित तीज दिना अर, गर्भ धरे जजि हों महरानी।। ऊँ ह्रीं फाल्गुनशुक्लतृतीयायां मित्रसेनागर्भावतरिताय अरहनाथायाध्यं निर्वपामीति
स्वाहा।।18॥
(दोहा) चैत्र शुक्ल पड़ि वा वसे, मल्लिनाथ जिन देव। प्रजावती के गर्भ में, जनँ मात कर सेव।। ऊँ ह्रीं चैत्रशुक्लएकं प्रजावतीगर्भावतरिताय मल्लिजिनायायं निर्वपामीति स्वाहा॥19॥
(अडिल्ल) श्रावण बदि दुतिया दिन सुव्रतिनाथ जू, श्यामा उर में बसे ज्ञान त्रय साथ जू।
ता माता के चरणकमल पूजें सदा, मंगल होय महान विघ्न जावें विदा।।। ऊँ ह्रीं श्रावणकृष्णद्वितीयायां श्यामागर्भावतरिताय मुनिसुब्रतनाथायाध्यं निर्वपामीति
स्वाहा।।200
(सोरठा) नमिनाथ भगवान, विपुला माता उर बसे। क्वार वदी दज जान, ता वेदी पूजॅ मुदा।। ऊँ ह्रीं आश्विनकृष्णपक्षे द्वितीयायां सुभद्रागर्भावतरितायनमिनाथायाध्यं निर्वपामीति
स्वाहा॥21॥
(मालती) कार्तिक मास सुदी छठ के दिन, श्री जिन नेम प्रभू सुखकारी।
मात शिवा के गर्भ पधारें, मुदित भये जग के नरनारी।। धन्य मात शिव-पथ अनुगामी, मोक्ष नगर की है अधिकारी।
पूजू द्रव्य आठ शुभ लैके, मिटत कालिमा कर्म अपारी।। ऊँ ह्रीं कार्तिकशुक्लाषष्ठयां शिवगर्भावतरिताय नेमिनाथायाध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥22॥
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