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(अडिल्ल) एकम कातिक कृष्ण गर्भ में आए के, नाथ अनन्त सु सुरजा माता पाय के।
पूजू देवी सार धन्य तिस भाग है, जासे विघ्न पलाय उदय सौभाग है। ऊँ ह्रीं कार्तिककृष्णाप्रतिपदासुरजागर्भावतरिताय अनंतनाथायाध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।14।
माता सुब्रता धर्म जिनं उर धारियो, तेरसि सुदि बैसाख सु सुख संचारियो।
पूजूं माता ध्याय धर्म उद्धारणी, शिवपद जासे होय सुमंगल कारणी।। ॐ ह्रीं वैशाखशुदित्रयोदश्यां सुप्रभागर्भावतरिताय धर्मनाथायाध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥15॥
(शिखरणी) महा ऐरादेवी परम जननी शांति जिनकी, सुदी सातें भादों करत पूजा इन्द्र तिनकी। जजूं मैं ले अध्य मान जिन के द्वन्द्व चरणा, भजे मम अघ सारे, नसत भव है जास शरणा।। ऊँ ह्रीं भाद्रपदशुक्लासप्तम्यां ऐरादेविगर्भावतरितायशान्तिनाथायाध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।16।
(चाली) सावन दशमी अन्धियारी, जिन गर्भ रहे सुखकारी।
प्रभू कुन्थु श्रीमती माता, पूर्जे जासों लहुं साता।। ऊँ ह्रीं श्रावणकृष्णदशम्यां श्री कान्तागर्भावतरिताय कुन्थुनाथायाध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥17॥
(मालती) है गुण शील तनी सरिता, अरनाथ तना जननी सुख खानी। मित्रा नाम प्रसिद्ध जगत में, सेव करत देवी हरखानी।। मुक्ति होन को यश धारत है, सम्यक रत्नत्रय पहचानी।
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