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(सोरठा) पुष्पदन्त भगवान, मात रमा के अवतरे। फागुन नौमि महान, जजौं मात के चरण जुग॥ ऊँ ह्रीं फाल्गुनकृष्णनवम्यां रमादेविगर्भावतरिताय पुष्पदन्तायाध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।9।।
(चाली)
वदि चैत छठ जानी, सीतल प्रभु उपजे ज्ञानी। नंदा माता हरखानी, पूजू देवी उर आनी।। ऊँ ह्रीं चैत्रकृष्णा अष्टम्यां सुनंदागर्भावतरिताय शीतलायायं निर्वपामीति स्वाहा॥10॥
वदी जेठ तनी छठि जानी, विष्णुश्री मात बखानी। श्रेयांसनाथ उपजाए, पूर्जे माता गुण
गाए।
ऊँ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णषष्ठयां विष्णुश्रीगर्भावतरिताय श्रेयांसनाथायाध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।11।
आषाढ़ वदी छठि गाई, श्री वासुपज्य जिनराई। सुजया माता हरखानी, पूर्जे ता पद उर
आनी।। ऊँ ह्रीं आषाढ़कृष्णाषष्ठयां जयावतिगर्भावतरिताय वासुपूज्यायाध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।12॥
(मालती) जेठ वदी दसमी गणिये, शुभ, मात सुश्यामा गर्भ पधारें, नाथ विमल आकुलता हारी, तीन ज्ञानधर धर्म प्रचारे। ता माता का धन्य भाग है, पूजत हैं हम अध्य सुधारें,
मंगल पावें विघ्न नशावें, वीतरागता भाव सम्हारे।।। ऊँ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णदशम्यां सुश्यामागर्भावतरिताय विमलायाध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।13॥
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