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(गाथा) गर्भस्थिति अभिनन्दा, वैसाख सित अष्टमी दिना सारा।
सिद्धार्था शुभ माता पूनँ चरण सुजान उपकारा।। ऊँ ह्रीं वैशाखशुक्ला अष्टम्यां सिद्धार्थागर्भावतरितायाभिनन्दनदेवा अध्यं निर्वपामीति
स्वाहा॥4॥
(सोरठा) श्रावण सित पख आप, मात मंगला उर वसे। श्री सुमतीश जिनाय, पूजें माता भाव सों।। ऊँ ह्रीं श्रावणशुक्लाद्वितीयायां मंगलागर्भावतरिताय सुमतिदेवाय अयं निर्वपामीति
स्वाहा।।5।।
(शिखरणी) वदी षष्ठी जानो सुभग महिना माघ सुदिना, सुसीमा माता के गर्भ तिष्ठै पद्म सुजिना।
जजों लैके अध्य मात देवी द्वन्द्व चरणा, कटें जासे हमरे सकल कर्म लेह शरणा।। ऊँ ह्रीं माघकृष्णषष्ठयां सुसीमागर्भावतरिताय पद्मप्रभायाध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।6।।
भादव शुक्ल छठी तिथि जानी, गर्भ धरे पृथ्वी महरानी।
श्री सुपाश्व जिननाथ पधारें, जनँ मात दुःख टाल हमारे।। ॐ ह्रीं भाद्रपदशुक्लषष्ठयां वसुन्धरागर्भावतरिताय सुपाश्वदेवायाध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥7॥
(शिखरणी) सुभग चैतर महिना असित पख में पांचम दिना, सुलखना माता ने गर्भ धारें चन्द्र सु जिना। ___ जजों लैके अध्यं मात जिनके शुद्ध चरणा, कटें जासे हमरे सकल कर्म लेहु शरणा।। ऊँ ह्रीं चैत्रकृष्ण पंचम्यां सुलक्षणागर्भावतरिताय चन्द्रप्रभायाध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥8॥
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