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________________ 24 तीर्थंकरों की गर्भकल्याणक तिथि के 24 अध्य (गीता) सर्वार्थसिद्धि विमान से जिन ऋषभ चय आए यहां, मरुदेवि माता गरभ शोभै होय उत्सव शुभ तहां। आषाढ़ वदि दुतिया दिना सब इन्द पूजें आयके, हमहूं करें पूजा सुमाता गुण अपूरव ध्यायके।। ॐ ह्रीं आषाढकृष्णपक्षे द्वितीयायां मरुदेविगर्भावतरिताय वृषभदेवायाध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।। (दोहा) जेठ अमावस सा दिन, गर्भ आय अजितेश। विजया माता हम जजें, मेटै सर्व कलेश।। ऊँ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णाऽमावस्यायां विजयसेनागर्भावतरितायाजितदेवायाध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।2।। (संकर) फागन असति सित अष्टमी को गर्भ आए नाथ, धन पुण्य माता सुसैन का संभव धरे सुख साथ। उपकार जग का जो भया सुरगुरु कथत थक जाय, हम ल्याय के शुभ अध्य पूजे विघ्न सब टल जाय।। ऊँ ह्रीं फल्गुनशुक्ला अष्टम्यां सुषेणागर्भावतरिताय संभवदेवा अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।3।। 474
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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