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(चाली)
वैशाख वदी दुज जाना,
श्रीपार्शवनाथ भगवाना। वामादेवी उर आए, पूजन हमक भाव
लगाए।
ऊँ ह्रीं वैशाखकृष्णद्वितीयायां वामागर्भावतरिताय पार्शवनाथायाघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।। 23।।
(मालती)
मास अषाढ़ सुदी छठि के दिन, श्री जिन वीर प्रभू गुणधारी। त्रिशला माता गर्भ पधारें, सकल लोक को मंगलकारी।
मोक्षमहल की है अधिकारी, शांत सुधा की भोगनहारी। जजूँ मात के चरण युगल को, करूँ विघ्न होऊ अविकारी।।
ऊँ ह्रीं आषाढ़ शुक्लषष्ठयां त्रिशलादेविगर्भावतरिताय महावीरायाघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥24॥
जयमाला
(श्रग्विणी)
धन्य हैं धन्य हैं मात जिननाथ की, इन्द्र देवी करें भक्ति भावां थकी। पूजि हों द्रव्य ले विघ्न सारे टलें, गर्भ कल्याण पूजन सकल अर्घ दलें॥1॥ रूप की खान हैं शील की खान हैं, धर्म की खान हैं, ज्ञान की खान हैं। पुण्य की खान हैं, सुक्ख की खान हैं, तीर्थ जननी महा शांति की शान हैं ||2| भेदविज्ञान से आप पर जानतीं, जैन सिद्धांत का मर्म पहचानतीं। आत्म-विज्ञान से मोह को हानतीं, सत्य चारित्र से मोक्ष पथ मानतीं ॥3॥
होत आहार नीहार नहिं धारतीं, वीर्य अनुपम महा देह विस्तारती। गर्भ धारण किये दुःख सब टालतीं, रूपको ज्ञानको वृद्धिकर डालतीं॥4॥ मात चौबिस महामोक्ष अधिकारिणी, पुत्रजनती जिन्हें मोक्ष में धारिणी ।
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