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सकल जीव स्वरूप विचारता, कोटि पद छब्बीस सुधारता।
पढत आत्मप्रवाद महान को, जजू पाठक दुर्मति हान को।। ऊँ ह्रीं आत्मप्रवादपूर्वधारकोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।163।।
कर्मबंध विधान बखानता, कोटि पद अस्सी लाख धारता।
पठत कर्म प्रवाद सुध्यान से, जजू पाठक शुद्ध विधान से।। ऊँ ह्रीं कर्मप्रवादपूर्वधारकोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।164॥
नय प्रमाण सुन्यास विचारता, लाख पद चौरासी धारता।
पूर्व प्रत्याहार जु नाम है, जजू पाठक रमता राम है।। ऊँ ह्रीं प्रत्याहारपूर्वधारकोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।165।।
मंत्र विद्याविधि को साधता, लक्ष दशकोटि पद धारता।
पूर्व है अनुवाद सुज्ञान का, जजू पाठक सन्मति दायका।। ॐ ह्रीं विद्यानुवादपूर्वधारकोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।166॥
पुरुष त्रेशठ आदि महानका, कथन वृत सकल कल्याणका।
कोटि छब्बिस पदको धारता, जजू पाठक अघ सब टारता।। ॐ ह्रीं कल्याणवादपूर्वधारकोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।167॥
कथत भेद सुवैद्यक शास्त्र का, कोटि तेरह पदका धारका।
पूर्व नाम सुप्रमाण प्रवाद है, जजू पाठक सुर नत पाद है।। ऊँ ह्रीं प्राणप्रवादपूर्वधारकोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।168॥
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