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कथत षट् द्रव्यों की सारता, एक कोटी पद को धारता।
पूर्व है उत्पाद सु जानकर, जजू पाठक निज रुचि ठानकर।। ऊँ ह्रीं उत्पादपूर्वधारकोपाध्याय परमेष्ठिने अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।157॥
सुनय दुर्नय आदि प्रमाणता, नवति छह कोटि पद धारता।
पूर्व अग्रायण विस्तार है, जजू पाठक भवदधि तार है।। ऊँ ह्रीं अग्रायणीयपूर्वधारकोपाध्याय परमेष्ठिने अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।158॥
द्रव्य गुण पर्यय बल कथत है, लाख सत्तर पदयह धरत है।
पूर्व है अनुवाद सु वीर्य का, जजू पाठक यति पद धारका।। ऊँ ह्रीं वीर्यानुवादपूर्वधारकोपाध्याय परमेष्ठिने अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।1591
नास्ति अस्ति प्रवाद सुअंग है, साठलख मध्यम पद संग है।
सप्तभंग कथत जिन मार्गकर, जजू पाठक मोह निवारकर।। ऊँ ह्रीं अस्तिनास्तिप्रवादपूर्वधारकोपाध्यायपरमेष्ठिने अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।1600
ज्ञान आठ सुभेद प्रकाशता, एक कम कोटि पद धारता।
सतत ज्ञानप्रवाद विचारता, जजू पाठक संशय टारता।। ऊँ ह्रीं ज्ञानप्रवादपूर्वधारकोपाध्याय परमेष्ठिने अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।161॥
कथत सत्य असत्य सुभावको, कोटि अरु पदधारी पूर्वको।
पढत सत्य प्रवाद जिनागमा, जजू पाठक ज्ञाता आगमा। ऊँ ह्रीं सत्यप्रवादपूर्वधारकोपाध्यायपरमेष्ठिने अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।162॥
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