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कथत छंदकला संगीत को, कोटि नवपद मध्यम रीत को।
पूर्व नाम सु क्रिया विशाल है, जजू पाठक दीनदयाल है।। ऊँ ह्रीं क्रियाविशालपूर्वधारकोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।169॥
तीन लोक विधानविचारता, कोटि अर्द्ध स द्वादश धारता।
पूर्वबिन्द त्रिलोक विशाल है, जजू पाठक करत निहाल है।। ॐ ह्रीं त्रैलोक्यविन्दुपूर्वधारकोपाध्याय परमेष्ठिभ्यः अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥1 70n
दोहा अंग इकादश पूर्वदश, चार सुज्ञायक साधा जजू गुरु के चरण दो, यजन सु अव्यावाधा। ऊँ ह्रीं अस्मिन् बिम्बप्रतिष्ठोत्सवद्विधाने मुख्यपूजाहसप्तम वलयोन्मुद्रितद्वादशांग
श्रुतदेवताभ्यस्तदाराधकोपाध्यायपरमेष्ठियश्च पूर्णायं निर्वपामीति स्वाहा।
अष्टम वलय में साधु परमेष्ठी के 28 मूल गुणों की पूजा
(नाराच) तजे सु राग-द्वेष भाव शुद्धभाव धारते, परम स्वरूप आपका समाधि से विचारते। करें दया सुप्राणि जंतु चर अचर बचावते, जजों यति महान प्राणिरक्ष व्रत निभावते।। ऊँ ह्रीं अहिंसामहाव्रतधारकसाधुपरमेष्ठिभ्यः अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।171॥
असत्य सर्व त्याग वाक् शुद्धता प्रचारते, जिनागमानुकूल तत्व सत्य सत्य धारते। अनेक नय प्रकार से वचन विरोध टारते, जजों यति महान सत्यवत सदा सम्हारते।। ॐ ह्रीं अनृतपरित्याग महाव्रतधारकसाधुपरमेष्ठिभ्यः अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।172॥
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