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नाथ जिन आत्मबल मुक्तिपथ पग दिया, चन्द्रमा चिन्हधर मोहतम हर लिया। बलमहाभूपती हैं पिता जास के, गमभुजं नाथ पूगे न भव में छके।।
ऊँ ह्रीं भुजंगमजिनाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।103॥
माता ज्वाला सती सेन गल भूपति, पुत्र ईश्वर जने पूजते सुरपती। स्वच्छ सीमानगर धर्म विस्तार कर, पूजते हो प्रगट बोधिमय भासकर।।
ऊँ ह्रीं ईश्वरजिनाय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।104॥
नाथ नेमिप्रभं नेमि हैं धर्मरथ, सूर्यचिन्हं धरे चालते मुक्तिपथ। अष्टद्रव्यं लिये पूजते अघहने, ज्ञान वैराग्यसे बोधि पावें घने।। ऊँ ह्रीं नेमिप्रभजिनाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।105॥
वीरसेना सुतं कर्मसेना हतं, सेनशूरं जिनं इन्द्रसे वन्दितं। पुण्डरीकं नगर भूमिपालक नृपं, हैं पिता ज्ञानसूरा करूं मैं जपं।।
ऊँ ह्रीं वीरसेनजिनाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।106॥
नम्र विजया तने देव राजा पती, अर उमामात के पुत्र संशय हती। जिन महाभद्र को पूजिये भद्रकर, सर्व मंगल करें मोह सन्ताप हर।।
ऊँ ह्रीं महाभद्रजिनाय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।107॥
है सुसीमा नगर भूप भूतिस्तवं, मात गंगाजने द्योतते त्रिभुवं। लांक्षणं स्वस्तिकं जिन यशोदेव को, पूजिये वन्दिये मुक्ति गुरुदेव को।।
ऊँ ह्रीं देवयशोजिनाय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।108॥
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