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वीर्यका पार ना ज्ञानका पार ना, सुक्खका पार ना ध्यान का पार ना। आप में राजते शान्तमय छाजते, अन्त बिन वीर्य को पूज अघ भाजते।।
ॐ ह्रीं अनन्तवीर्यजिनाय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।97।।
अंकवृष धारते धर्मवृष्टी करें, भाव सन्तापहर ज्ञानसृष्टि करें। नाथ सूरिप्रभं पूजते दुखहनं, मुक्तिनारी वरं पादुपते निजधन।।
ॐ ह्रीं सूरिप्रभजिनाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।98॥
पुण्डरं पुरवरं माता विजया जने, वीर्य राजा पिता ज्ञानधारी तने। जुग्मचरणं भजे ध्यान इकतान हो, जिनविशालप्रभं पूज अघहान हो।।
ऊँ ह्रीं विशालप्रभजिनाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।99॥
वज्रधर जिनवरं पद्मरथ के सुतं, शंखचिन्हं धरे मानरुष भय गतं। मात सरसुति बड़ी इन्द्र सम्मानिता, पूजते जास के पाप सब भाजता।।
ऊँ ह्रीं वज्रधरजिनाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।100॥
चन्द्र आनन जिनं चन्द्र को जयकरं, कर्म विध्वंसकं साधुजन शमकरं। मात करुणावती नग्र पुण्ड्रीकिनी, पूजते मोह की राज्यधानी छिनी।।
ऊँ ह्रीं चन्द्राननजिनाय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।101॥
श्रीमती रेणुका मातहै जास की, पद्मचिन्हं धरे मोह को मात दी। चन्द्रबाहुजिनं ज्ञानलक्ष्मी धरं, पूजते जास के मुक्तिलक्ष्मी वरं।। ऊँ ह्रीं चन्द्रबाहुजिनाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥102॥
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