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धर्मद्वय वस्तुद्वय नव-प्रमाणद्वयं, नाथ जुगमन्धरं कथितं व्रतद्वयं। भूपश्री रुह सुतं ज्ञानकेवलगतं, पूजिये भक्ति से कर्मशत्रू हतं । ऊँ ह्रीं जुगमन्धरजिनाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥91॥
भूप सुग्रीव विजया से जाए प्रभू, एण चिन्हं धरे जीतते तीन भू। स्वच्छ सीमापुरी राजते बाहुजन, पूजिये साधु को राग-रुष दोष बिन।। ॐ ह्रीं बाहुजिनाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥92॥
वंशनभ निर्मलं सूर्य सम राजते, कीर्तिमय बन्ध्य बिन क्षेत्र शुभ शोभते । मात सुन्दर सुनन्दा सुतं भवहतं, पूजते बाहु शुभ भवभयं निर्गतं ।। ॐ ह्रीं सुबाहुजिनाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥93॥
जन्म अलकापुरी देव सेनात्मजं, पुण्यमय जन्मए नाथ संजातकं। पूजिये भाव से द्रव्य आठों लिये,
और रस त्याग कर आत्मरस को पिये ।।
ॐ ह्रीं संजातकजिनाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।94॥
जन्मपुर मंगला चन्द्र चिन्हं धरे, आप से आप ही भव उदधि उद्धरे । प्रभस्वयं पूजते विघ्न सारे टरे, होंय मंगल महा कर्मशत्रू डरे || ॐ ह्रीं स्वयंप्रभजिनाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।। 95॥
वीरसेना सुमाता सुसीमापुरी, देवदेवी परमभक्ति उर में धरी। देव ऋषभाननं आननं सार है, देखते पूजते भव्य उद्धार है ।।
ऊँ ह्रीं ऋषभाननंदेवाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।96।।
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