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सुरविधाधर प्रश्न कराय, उत्तर देत भरम टल जाय। प्रश्नकीर्ति जिन यश के धार, पूजत कर्मकलंक निवार।। ऊँ ह्रीं प्रश्नकीर्तिजिनाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।75॥
पाप दलनते जय को पाय, निर्मल यश जग में प्रगटाय।
गणधरादि नित वन्दन करें, पूजत पापकर्म सब हरें।। ऊँ ह्रीं जयकीर्तिदेवाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।76॥
बुद्धिपूर्ण जिन बन्दूं पाय, केवलज्ञान ऋद्धि प्रगटाय। चरण पवित्र करण सुखदाय, पूजत भवबाधा नश जाय।। ऊँ ह्रीं पूर्णबुद्धिजिनाय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।77॥
हैं कषाय जग में दुःखकार, आत्मधर्म के नाशनहार।
निःकषाय होगें जिनराज, तातें पूजूं मंगल काज।। ॐ ह्रीं निःकषायजिनाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।78।।
कर्मरूप मल नाशनहार, आत्म शुद्ध कर्ता सुखकार। विमलप्रभ जिन पूजूं आय, जासे मन विशुद्ध हो जाय।। ऊँ ह्रीं विमलप्रभदेवाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।79॥
दीप्तवन्त गुण धारण हार, बहुल प्रभ पूजों हितकार। आतमगुण जासो प्रगटाय, मोह तिमिर क्षण में विनशाय।। ऊँ ह्रीं बहुलप्रभदेवाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।80॥
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