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मोक्ष राज्य देवे नहिं कोय, स्वयं आत्मबल लेवें सोय। देव स्वयंप्रभ चरण नमाय, पूजूं मन-वच ध्यान लगाय।। ॐ ह्रीं स्वयंप्रभदेवाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥ 69॥
मन-वच-काय गुप्ति धरतार, तीव्र शस्त्र अघ मारणहार। सर्वायुध जिन साम्य प्रचार, पूजत जग मंगल करतार।। ऊँ ह्रीं सर्वायुधदेवाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।70।।
कर्म शत्रु जीतन बलवान, श्री जयदेव परम सुखखान। पूजत मिथ्यात विघटाय, तत्त्व कुतत्त्व प्रकट दरशाय ।। ॐ ह्रीं जयदेवाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।। 71॥
आत्म प्रभाव उदय जिन भयो, उदयप्रभ जिन तातैं थयो । पूजत उदय पुण्य का होय, पापबन्ध सब डाले खोय।। ॐ ह्रीं उदयप्रभजिनाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।। 72॥
प्रभा मनीषा बुद्धिप्रकाश, प्रभादेव जिन छूटी आश पूजन प्रभा ज्ञान उपजाय, संशय तिमिर सबै हट जाय।। ॐ ह्रीं प्रभादेवजिनाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।। 73॥
भव्यभक्ति जिनराज कराय, सफल काल तिनका हो जाय।
देव उदंक पूज जो करैं, मनुषदेह अपनी वर करें।। ॐ ह्रीं उदंकदेवजिनाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।। 74॥
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