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सिद्धार्थराय त्रय ज्ञानी, सुत वर्द्धमान गुण खानी। समवसृत श्रेणिक पूजे, तुम सम है देव न दूजे।। ऊँ ह्रीं वर्द्धमानजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। 65॥
(दोहा)
वर्तमान चौबीस जिन, उद्धारक भवि जीव । बिम्ब प्रतिष्ठा साधने, यजूं परम सुख नीव ऊँ ह्रीं अस्मिन् प्रतिष्ठामहोत्सवे यागमण्डले तृतीयवलयोन्मुद्रित वर्तमानचतुर्विंशतिजिनेभ्यः पूर्णार्घं निर्वपामीति स्वाहा।
चतुर्थ वलय में भविष्यकाल के 24 तीर्थंकरों की पूजा (चौपाई)
महापद्य जिन भावीनाथ, श्रेणिक जीव जगत विख्यात । लक्ष्मी चंचल लिपटी आन, तब चरणा पूजूँ भगवान।। ऊँ ह्रीं महापद्यजिनाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।661
देव चतुर्विध पूजे पाय, नाय नाय सुरप्रभ जिनराय। मैं सुमरण करके हरषाय, पूजूँ हर्ष न अंग समाय। ॐ ह्रीं सुरप्रभुजिनाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।67
जिनके वंदूं पाय, सेवकजन सुखसार लहाय।
सुप्रभु करुणाधारी धन दातार, सो अविनाशी जिय सुखकार ।। ॐ ह्रीं सुप्रभुजिनाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।68॥
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