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इक्ष्वाकु सुवंश सुहाया, वसुपूज्य तनय प्रगटाया।
इंद्रादिक सेवा कीनी, हम पूजें जिनगुण चीन्हीं।। ऊँ ह्रीं वासुपूज्यजिनाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।53॥
कापिल्य पिता कृतवर्मा, माता श्यामा शुचि धर्मा।
श्री विमल परम सुखकारी, पूजा द्वै मल हरतारी॥ ऊँ ह्रीं विमलनाथजिनाय अयं निर्वपामीति स्वाहा।। 54॥
साकेता नगरी भारी, हरिसेन पिता अविकारी।
सुर-असुर सदा जिनचरणा, पूजें भवसागर तरणा।। ऊँ ह्रीं अनन्तनाथजिनाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।55।।
समवसत द्वैविध धर्मा, उपदेशो श्री जिनधर्मा। हितकारी तत्व बताए, जासे जन शिवमग पाये।। ऊँ ह्रीं धर्मनाथजिनाय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।56॥
कुरुवंशी श्री विश्वसेना, ऐरा देवी सुख दैना। श्री हस्तिनापुर आए, जिन शांति जजों सुख पाए।। ऊँ ह्रीं शांतिनाथजिनाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।57॥
श्री कुन्थु दयामय ज्ञानी, रक्षक षट्कायी प्राणी। सुमरत आकुलता भाजे, पूजत ले दर्व सु ताजे।। ऊँ ह्रीं कुन्थुनाथजिनाय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।58॥
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