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तृतीय वलय में वर्तमान काल के 24 तीर्थंकरों की पूजा
(चाल)
मनु नाभि महीधर जाये मरुदेवि उदर उतराए।
युग
आदि सुधर्म चलाया, वृषभेश जजों वृष पाया।।
ॐ ह्रीं ऋषभजिनाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।। 42॥
जित
शत्रु जने व्यवहारा, निश्चय आयो अवतारा। सब कर्मन जीत लिया है, अजितेश सुनाम भया है ।। ॐ ह्रीं अजितजिनाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥ 43 ॥
दृढ़राज सुवंश अकाशे, सूरज सम नाथ प्रकाशे। जग-भूषण शिवगति दानी, संभव जज केवलज्ञानी।। ॐ ह्रीं सम्भवजिनाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥44॥
कपिचिन्ह धरे अभिनंदा, भवि जीव करे आनन्दा। जम्मन मरणा दुःख टारें, पूजे ते मोक्ष सिधारें। ऊँ ह्रीं अभिनन्दनजिनाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||45||
सुमतीश जजों सुखकारी, जो शरण गहें मतिधारी। मति निर्मल कर शिव पावें, जग-भ्रमण हि आप मिटावें ।। ऊँ ह्रीं सुमतिनाथजिनेन्द्राय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।46।।
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