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पुष्पांजलि पुष्प नितें जजिये, सब कामव्यथा क्षण में हरिये। नित शील स्वभाव हिरम रहिये, जिनआत्मजनित सुखको लहिये।।
ॐ ह्रीं पुष्पांजलिजिनाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।31॥
उत्साह जिनं उत्साह करें, निज संयम चंद्रप्रकाश करें। समभव समुद्र बढ़ावत हैं, हम पूजत तब गुण पावत हैं।। ॐ ह्रीं उत्साहजिनाय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।32॥
चिंतामणि सम चिन्ता हरिये, निज सम करिये भव तम हरिये।
परमेश्वर जिन ऐश्वर्य धरें, जो पूजे ताके विघ्न हरें।। ऊँ ह्रीं जिनाय परमेश्वरअध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।33॥
ज्ञानेश्वर ज्ञान समुद्र पाय, त्रैलोक बिन्द सम जहं दिखाय। निज आतमज्ञान प्रकाशकार, वन्दं पूजूं मैं बार-बार।। ऊँ ह्रीं ज्ञानेश्वरजिनाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।34॥
कर्मों ने आत्म मलीन किया, तप अग्नि जला निज शुद्ध किया। विमलेश्वर जिन मो विमल करो, मल ताप सकल ही शांत करो।। ॐ ह्रीं विमलेश्वरजिनायजिनाय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।35॥
यश जिनका विश्वप्रकाश किया, शशि कर इव निर्मल व्याप्त किया। भट मोह-अरी ने शान्त किया, यशधारी सार्थक नाम किया।। ऊँ ह्रीं यशोधरजिनाय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।36॥
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