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भामण्डल छवि वरणी न जाय, जहँ जीव लखें भव सप्त आय। मन शुद्ध करें सम्यक्त पाय, सिद्धाभ भजे भवभय नशाय ।। ऊँ ह्रीं सिद्धाभजिनाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥25॥
अमलप्रभ निर्मल ज्ञान धरे, सेवा में इन्द्र अनेक खड़े। नित संत सुमंल गान करें, निज आतमसार विलास करें। ऊँ ह्रीं अमलप्रभजिनाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।। 26।।
उद्धार जिनं उद्धार करें, भव कारण भाँति विनाश करें। हम डूब रहे भवसागर में, उद्धार करो निज आत्म रमें। ऊँ ह्रीं उद्धारजिनाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।। 27॥
अग्निदेव जिनं हो अग्निमई, अठ कर्मन ईंधन दाह दई । हम असात तृणं कर दग्धप्रभो, निजसम करले निजराज प्रभो ।। ॐ ह्रीं अग्निदेवजिनाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥28॥
संयम जिन द्वैविध संयम को, प्राणी रक्षण इन्द्रिय दम को । दीजे निश्चय निज संयम को, हरिये हम सर्व असंयम को || ॐ ह्रीं संयमजिनाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥29॥
शिवजिन शिवशाश्वत सौख्यकरी, निज आत्मविभूति स्वहस्त करी । हम शिव वांछक कर जोड़ नमें, शिवलक्ष्मी दो नहिं काहू नमें।। ॐ ह्रीं शिवजिनाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा || 30॥
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