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अथ चन्द्रप्रभ जिनेन्द्रय पूजा चन्द्रपुराम्बुधि चन्द्रं, चन्द्राङ चन्द्रकान्त कीर्ति सकाशम्।
चन्द्रप्रभ जिनमर्चनं, चन्द्रेन्द स्फारकीर्ति कान्ताकान्तम्॥ ऊँ ह्रीं चन्द्रप्रभ जिनेन्द्र! अत्र अवतर-अवतर संवौषट् आह्वाननम्।
ऊँ ह्रीं चन्द्रप्रभ जिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं चन्द्रप्रभ जिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
अथाष्टक
करोम्यर्चनं भक्त्या, शीतलै शुभ वारिभि। चन्द्रप्रभ जिनेन्द्रस्य, तापत्रय विनाशने।। ऊँ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।1।।
रचयाम्यर्चनं भक्त्या, चन्दनैश्चित नन्दन। चन्द्रप्रभ जिनेन्द्रस्य, भवातापनिवारणे।। ऊँ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभ् जिनेन्द्राय संसारातापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।।2।।
शाल्याक्षत भरै पुञजै, अखण्डै सुवासितै। चन्द्रनाथं यजे नित्यं, अक्षयपद कारणे।। ऊँ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्ताय अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।।3।।
निर्मिताभ्यर्चनं भक्त्या, जुही पाटलमल्लिकैः। चन्द्रप्रभ जिनेन्द्रस्य कामशत्रु विनाशने।। ऊँ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय कामबाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा॥4॥
अर्चाकरोम्यहं भक्त्या, घृतपूरित सुव्यञ्जनैः। चन्द्रप्रभ जिनेन्द्रस्य, क्षुधारोग निवारणे।। ॐ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।।5।
करोम्यर्चनं भक्त्या, रत्नपुञ्जक दीपकैः। चन्द्रप्रभ जिनेन्द्रस्य, मोहतमाप हारणे।। ऊँ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाश्नाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।।6।
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