________________
निमित्तज्ञान की बात कहे मुनि, दाता को सुखदाई।
भोजन फेर गहे घर बाके, तो सिर दोष चढ़ाई।। निमितदोष ऋषिराज तजे यह, समिति एषणा पाले।
या जुत सम्यक्चारित पूजों, सो मेरे अघ टाले।। ओं ह्रीं निमित्तदोषरहितैषणासमितिसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
दाता के घर जाके मुनिवर, कह प्रभुता की बातें। इस विधि से सुन्दरतम भोजन, कबहुं यतीजन पाते। यह 'आजीवक' दोषतजे यति, समिति एषणा पाले।
या जुत सम्यक्चारित पूजों, सो मेरे अघ टाले।। ओं ह्रीं आजीवकदोषरहितैषणासमितियुत सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जो मुनि दाता को सुसुहावन, बात कहे घर जाई। भोजन ताके आप करे ऋषि, तो अघ लेय उपाई।। दोष 'वनीपक' तजिमुनि याको, समिति एषणा पाले।
या जुत सम्यक्चारित पूजों, सो मेरे अघ टाले।। ओं ह्रीं वनीपकददोषरहितैषणासमितियुत सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जो मुनि दाता के घर जाकर, औषधि-भेद बतावे। नाड़ी देख सुरोग बतावे, फिर भोजन को खावे। दोष ‘चिकित्सा' त्याग के, समिति एषणा पाले।
या जुत सम्यक्चारित पूजों, सो मेरे अघ टाले।। ओं ह्रीं चिकित्सादोषरहितैषणासमितियुत सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
319)