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त्रास और भयकार, दान मुनि को करे। दोष ‘अच्छेद्य' सुनाम, आपने सिर धरे।।
सो भोजन मुनि तजे, एषणा लाय जी। या जुत सम्यग्वृत्त, जजो शिवदाय जी। ओं ह्रीं अच्छेद्यदोषरहितैषणासमितियुत सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जाको धनी न होय, दान दे और जी। 'अनीशार्थ' अघ दात, लहे तिस ठौर जी।।
सो भोजन मुनि तजे, एषणा लाय जी। या जुत सम्यग्वृत्त, जजो शिवदाय जी।। ओं ह्रीं अनीषार्थदोषरहितैषणासमितियुत सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
षोडश दोष सुजान, मुनी आहार में। दाता पाले जान, सोय बुध सार में।। सो भोजन मुनि तजे, एषणा लाय जी। या जुत सम्यग्वृत्त, जजो शिवदाय जी।। ओं ह्रीं षोडशोद्गमनदोषरहितैषणासमितियुत सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
चाल जोगीरासा जाय यती दाता के घर में, बालक नाहिं खिलावे। नहिं श्रृंगारे नहिं पुचकारे, बालक को न रमावे।। 'धात्री' दोष तजे मुनिवर यह, समिति एषणा पाले।
या जुत सम्यक्चारित पूजों, सो मेरे अघ टाले।। ओं ह्रीं धातृदोषरहितैषणासमितिसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
दाता के घर जाय यतीश्वर, इत उत बात बतावे।
देशान्तर की कहे वार्ता, तो मुनि दोष बढ़ावे।। 'दूत' दोष यह तजे महामुनि, समिति एषणा पाले।
या जुत सम्यक्चारित पूजों, सो मेरे अघ टाले। ओं ह्रीं दोषरहितैषणासमितिसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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