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जब मुनि करें विहार, दयानिधि सार जी । चाले नहीं सुताव, बड़े डग धार जी।।
ऐसो दोष निवार, समिति पग धार है। या जुत सम्यग्वृत्त, जजों शिवदाय है।। ओं ह्रीं शीघ्रगमनदोषरहितेर्यासमितिसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
रागवचन सुन यतो, राह चलते नहीं । राग द्वेष कर चंचल, चित करते नहीं । । तातें ईर्यासमिति, शुद्ध सुखदाय हैं। या जुत सम्यग्वृत्त, जजों शिवदाय है। ओं ह्रीं पथिकगमनकालरागवचनश्रवणचित्तचांचल्यदोषरहितेर्यासमितिसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
राह चलत वच दुष्ट, श्रवण करके सही । द्वेषभाव करि करे, चित्त को चल नहीं ।। तब शुभ ईर्यामिति, होय हितदाय है। या जुत सम्यग्वृत्त, जजों शिवदाय है। ओं ह्रीं मार्गगमनकालदुष्टवचनश्रवणदोषरहितेर्यासमितिसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
राह चलत श्री मुनिवर, कबहुँ न यों करें। पड़ी वस्तु पग कर तें, कबहुँ न ले धरें ।। सो यह दोष निवार, समिति सुध लाय है। या जुत सम्यग्वृत्त, जजों शिवदाय है।। ओं ह्रीं मार्गस्थवस्तुग्रहणदोषरहितेर्यासमितिसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
सर्व दोष तें रहित, मुनी मग जाय है। जूना के परमान, भूमि दिखवाय हैं ।। ऐसी समिति दयालु, भाव कर लाय हैं। या जुत सम्यग्वृत्त, जजों शिवदाय है।। ओं ह्रीं सर्वदोषरहितेर्यासमितिसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जो जिस देश मंझार, वस्तु को नाम है। सो ही कहना सत्य, वचन शुभधाम है।। जनपद सत् कथनीय, समिति सुखदाय हैं। या जुत सम्यग्वृत्त, जजों शिवदाय है।। ओं ह्रीं जनपदसत्यभाषासमितिसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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