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रौढिक जाको नाम, सकल जन यों कहे। सोई कहना संवृति, सत सुधि में रहे।। ऐसो भी वच भाषा, समिति सु जानिये।या जुत सम्यग्वृत्त, जजों शिवदाय है।। ओं ह्रीं संवृत्तिसत्यभाषासमितिसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
चित्र मनुज हय हाथी, वृष के कीजिये। फिर तिनको नर पश, नाम रख लीजिये।। यही थापना सत्य, समिति वच जानिये। या जुत सम्यग्वृत्त, जजों शिवदाय है।। ओं ह्रीं स्थापनासत्यभाषासमितिसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जाको जग में नाम, प्रसिद्ध सुगाइये। सोई कहना नाम, दोष नहिं पाइये। नामसत्य यह सार, समिति वच जानिये। या जुत सम्यग्वृत्त, जजों शिवदाय है।। ओं ह्रीं नामसत्यभाषासमितिसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
यह रंग काला पीला, लाल हरा सही। ऐसा कहना रूप, सत्य भाषा सही।। ये ही भाषा सत्य, वचन मन आनिये। या जुत सम्यग्वृत्त, जजों शिवदाय है।। ओं ह्रीं रूपसत्यभाषासमितिसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
यहै पदारथ बड़ा, यहै छोटा सही। कहे अपेक्षा, वचन, घने परगट मही।। यही सत्य परतीति, समिति वच जानिये। या जुत सम्यग्वृत्त, जजे हित मानिये।। ओं ह्रीं प्रतीत्यसत्यभाषासमितिसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
नैगमनय की रीति, वचन सो भाषिये। कर मन ठीक जू वस्तु, हिये में रखिये।। सत् है सो व्यवहार, समिति वच आनिये। या जुत सम्यग्वृत्त, जजे हित मानिये।। ओं ह्रीं व्यवहारसत्यभाषासमितिसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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